हिमाचल में पंचायत चुनाव से पहले जिला परिषद के पुनर्सीमांकन पर फिर बवाल

इस साल के अंत में पंचायत चुनाव हैं, लेकिन इससे पहले ही शिमला के 24 जिला परिषद वार्डों के पुनर्सीमन पर फिर बवाल खड़ा हो गया है। राज्य सरकार के पुनर्सीमांकन के आदेश के बावजूद जिला प्रशासन शिमला ने इस संबंध में पुरानी सूचना ही जारी की दी है। वर्ष 2015 में जिस सूचना पर पंचायत चुनाव के वक्त बवाल उठा था, उसे जस का तस जारी किया है।इस प्रकरण की अदालत में लंबी लड़ाई लड़ने वाले याचिकाकर्ता डॉ. सुशांत देष्टा ने इस पर लिखित आपत्ति दर्ज की है। उन्होंने इसे सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेशों की अनदेखी बताया है। डॉ. देष्टा जयराम सरकार की ओर से गठित किए गए गोसेवा आयोग के सदस्य भी हैं। वर्ष 2015 में जब जिला परिषदों का पुनर्गठन हुआ तो शिमला जिला परिषद की पुनर्सीमांकन प्रक्रिया विवादित हुई थी।

उस वक्त 2010 के पुनर्सीमांकन में बदलाव करते हुए शिमला के जुब्बल के जयपीड़ी माता जिला परिषद वार्ड को समाप्त कर दिया गया था। इसका कुछ हिस्सा थरोला में डाला गया तो कुछ नकराड़ी जिला परिषद वार्ड में डाला गया। थरोला वार्ड की नौ ग्राम पंचायतें टिक्कर वार्ड में डाली गईं। यह बाघी, रामनगर, रतनाड़ी, रावला क्यार, देवगढ़, हिमरी, कलबोग, क्यारवीं और नगाण थीं।

बराल, उखली-मेंहदली, मुंछाड़ा, करछाड़ी, करासा, कटलाह, शील और शेखल ग्राम पंचायतें टिक्कर वार्ड से काटकर सीमा रण्टाड़ी में डाली गईं। इसी में सीमा रण्टाली और समोली पंचायतें धगोली वार्ड से लेकर डाली गई। मुंछाड़ा और लोअर कोटी को अढ़ाल वार्ड से लिया गया। पुनर्गठन की इस पूरी प्रक्रिया में नियमों की पूरी अनदेखी की गई जिसका जिला परिषद वार्ड टिक्कर  के निवासी डॉ. सुशांत देष्टा ने विरोध किया। वह हिमाचल हाईकोर्ट चले गए। चुनाव हो गए तो टिक्कर वार्ड के नतीजों पर स्टे लगा।

बाद में डेढ़ साल बाद रोक हटी तो उसके बाद मामला और आगे बढ़ा। हाइकोर्ट ने याचिकाकर्ता के पक्ष में निर्णय दिया व सरकार को जिला परिषद वार्डों का 6 महीने के अंदर वर्ष 2010 के आधार पर पुनर्सीमांकन का आदेश दिया। सरकार हाईकोर्ट के पुनर्सीमांकन के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई। सुप्रीम कोर्ट ने भी 2016 के हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को सही माना और सरकार को उसे लागू करने के लिए कहा। 

Source: Amar Ujala

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