बर्फ़ से लकदक जिला लाहौल-स्पीति के तोद वेली लौसर पंचायत के क्यामो गांव में धाछंग पर्व की परंपरा सदियों पुरानी चली आ रही है।धाछंग पर्व बौद्ध केलेंडर के अनुसार बारहवें महीने के (छैवा) ग्यारह से पर्व शुरू होता है और सात दिनों पर्व मनाते है।
धाछंग का अर्थ धा-(तीर) और छांग का अर्थ लुगड़ी पैय होता है, इसलिए धाछंग का मतलब बुराई पर अच्छाई की जीत है। इस पर्व में लोग धनुष बाण लैकर अपने परंपरागत रिती रिवाजों को अपनाते हुए सब गांव वाले एकत्रित होकर छांग पीते हैं और बर्फ़ में तीर चलाने का लक्ष्य निर्धारित करता है । ऐसी मान्यता है कि बुद्ध दैत्यों और दानवों को सर्वनाश करने के लिए स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित होकर शत्रु का नाश किया था। और उसी दिन के उपलक्ष पर पर्व की शुरुआत बोध संभाग के अनुयायी बड़े धूमधाम के साथ मनाते हैं।
धाछंग की मान्यता : स्पीती क्यामों निवासी सोनम
पलदन, तन्जिन, कलजंग, का कहना है कि बुद्ध के स्वर्ग भ्रमण के साथ ही क्यामों गांव में धाछंग पर्व का प्रारंभ होता है। बुरी शक्तियों के प्रकोप को नष्ट करने के उद्देश्य से क्यामो गांव में धाछंग का आयोजन होता है। इस खेल में गांव के प्रत्येक परिवार से एक व्यस्क पुरुष सदस्य का भाग लेना अनिवार्य होता है। जो परिवार इस खेल में भाग नहीं लेगा उसे बतौर जुर्माना देना पड़ता है।
तीर चलाने का लक्ष्य एक दिशाओं, पूर्व और पश्चिम की तरफ होता है। हर वर्ष एक दिशाओं के लक्ष्य की दूरी करीब 100 फीट से भी अधिक होती है। लक्ष्य नहीं होता है। जबकि दूसरे गांव में पूर्व के लक्ष्य को डायन व पश्चिम के लक्ष्य को राक्षस का प्रतीक माना जाता है। खिलाड़ियों को बारी-बारी दोनों तरफ से लक्ष्य को भेदना होता है।धाछंग में प्रतिभागी एक बारी में केवल तीन तीर का ही प्रयोग कर सकता है।अंत में गांव के सभी पुरुष प्रतिभागी एकएक तीर अपने-अपने मुखिया को लक्ष्य साधने के लिए देता है। उत्सव का समापन पारंपरिक शैली में दावत एवं लोक नृत्य का आनंद लेते हुए होता है।