शिमला। सीटू राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश ने मजदूर विरोधी लेबर कोडों,बिजली विधेयक 2020,कर्मचारी व जनता विरोधी केंद्रीय बजट के खिलाफ़ प्रदेशभर में जोरदार प्रदर्शन किए। ये प्रदर्शनशिमला,रामपुर,निरमण्ड,सोलन,बद्दी,दाड़लाघाट,नाहन,मंडी,सरकाघाट,धर्मशाला,चम्बा,हमीरपुर,ऊना,कुल्लू,आनी आदि में किये गए। शिमला के डीसी ऑफिस में हुए प्रदर्शन में विजेंद्र मेहरा,प्रेम गौतम,जगत राम,डॉ कुलदीप तंवर,डॉ ओंकार शाद,सत्यवान पुंडीर,बाबू राम,बालक राम,विनोद बिरसांटा,किशोरी ढटवालिया,दलीप,मदन,राजू,हनी,राम प्रकाश,रंजीव कुठियाला व संगीता आदि शामिल रहे। सीटू ने केंद्र सरकार के बजट को पूर्णतः मजदूर, कर्मचारी व किसान विरोधी करार दिया है। यह बजट गरीब विरोधी है व केवल पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाला है। सीटू ने केंद्र सरकार को चेताया है कि मजदूर विरोधी लेबर कोडों,बिजली विधेयक 2020 व कृषि कानूनों को अगर वापिस न लिया तो सरकार के खिलाफ आंदोलन तेज होगा।
सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने कहा है कि केंद्र की मोदी सरकार पूरी तरह पूँजीपतियों के साथ खड़ी हो गयी है व आर्थिक संसाधनों को आम जनता से छीनकर अमीरों के हवाले करने के रास्ते पर आगे बढ़ रही है। मजदूर विरोधी चार लेबर कोड,तीन कृषि कानून,बिजली विधेयक 2020 पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से ही बनाए गए हैं। सीटू ने मांग की है कि इन्हें तुरन्त वापिस लिया जाए। उन्होंने कहा कि बजट में बैंक,बीमा,रेलवे,एयरपोर्टों,बंदरगाहों,ट्रांसपोर्ट,गैस पाइप लाइन,बिजली,सरकारी कम्पनियों के गोदाम व खाली जमीन,सड़कों,स्टेडियम सहित ज़्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण करके बेचने का रास्ता खोल दिया गया है। ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस के नारे की आड़ में मजदूर विरोधी लेबर कोडों को अमलीजामा पहनाकर यह बजट *इंडिया ऑन सेल* का बजट है। इस से केवल पूंजीपतियों,उद्योगपतियों व कॉरपोरेट घरानों को फायदा होने वाला है व गरीब और ज़्यादा गरीब होगा।
खुद को गरीबों की सरकार कहने वाली मोदी सरकार गरीबों को खत्म करने पर आमदा है। महिला सशक्तिकरण व नारी उत्थान के नारे देने वाली केंद्र सरकार ने गरीबों व महिलाओं को इस बजट में आर्थिक तौर पर कमज़ोर किया है। देश का सबसे गरीब तबका व सबसे ज़्यादा महिलाएं सामाजिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाली मनरेगा व स्कीम वर्करज़ जैसी कल्याणकारी योजनाओं में कार्य करते हैं। इन क्षेत्रों के बजट में भारी कटौती की गई है। सरकार ने मनरेगा के बजट में 41 प्रतिशत कटौती कर दी गयी है जबकि देश में कोरोना महामारी के कारण उद्योग बन्दी व अन्य क्षेत्रों में काम बन्दी होने से मजदूरों का गांव की ओर रिवर्स माइग्रेशन हुआ है व बेरोजगार जनता के लिए मनरेगा रोज़गार का सबसे बड़ा साधन बनकर उभरा है। मनरेगा में बजट कटौती से देश में बेरोज़गारी और बढ़ेगी। कोरोना वारियर की बेहतरीन भूमिका अदा करने वाले आंगनबाड़ी कर्मियों के बजट में सरकार ने 30 प्रतिशत कटौती कर दी है। बच्चों की शिक्षा में अहम योगदान देने वाली मिड डे मील योजना के बजट में 1400 करोड़ रुपये की कटौती कर दी गयी है। जॉब व स्किल डेवेलपमेंट के बजट में 35 प्रतिशत की कटौती कर दी गयी है। सरकार ने 15वें वित्त आयोग की सिफारिश अनुसार कई केंद्रीय योजनाओं को खत्म करने का ऐलान किया है। देश में सबसे कम वेतन लेने वाले योजना कर्मियों जिन्हें सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतन भी नहीं मिलता है व जिन्हें केंद्र सरकार एक हज़ार से चार हज़ार रुपये वेतन प्रतिमाह देती है,उनके बजट में भारी कटौती की गई है जबकि खजाना खाली होने का रोना रोने वाली केन्द्र सरकार ने पूंजीपतियों से साढ़े दस लाख करोड़ रुपये के बकाया टैक्स को वसूलने पर एक शब्द तक नहीं बोला है। सरकार ने पिछले पांच वर्षों में योजनकर्मियों के बजट में लगातार कटौती की है जबकि दूसरी ओर पूंजीपतियों के टैक्स लगातार घटाकर उन्हें भारी राहत दी गयी है। टैक्स चोरी करने वाले पूंजीपतियों को सरकार ने पिछले पांच वर्षों में लगातार संरक्षण दिया है जोकि बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।