छात्र अभिभावक मंच का शिक्षा निदेशालय शिमला के बाहर हल्ला बोल

शिमला। छात्र अभिभावक मंच हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा निजी स्कूलों व संस्थानों को पूरी फीस लेने के लिए अधिकृत करने के निर्णय के खिलाफ शिक्षा निदेशालय शिमला के बाहर प्रदर्शन किया गया। मंच ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि इस निर्णय को तुरन्त वापिस लिया जाए व निजी स्कूलों द्वारा छात्रों व अभिभावकों की पूर्ण फीस वसूली में की जा रही मानसिक प्रताड़ना पर रोक लगाई जाए। मंच ने प्रदेश सरकार को चेताया है कि अगर उसने पूर्ण फीस वसूली के निर्णय को जबरन लागू करने की कोशिश की तो इसके खिलाफ जोरदार आंदोलन होगा। शिक्षा निदेशालय के बाहर मंच के सदस्य एकत्रित हुए तथा लगभग एक घण्टे तक प्रदेश सरकार,शिक्षा विभाग व निजी स्कूल प्रबंधनों के खिलाफ जोरदार नारेबाजी करते रहे। प्रदर्शनकारी निजी स्कूलों की लूट व खुली मनमानी के खिलाफ आंदोलनरत रहे। प्रदर्शन में कपिल शर्मा,बाबू राम,हिमी देवी,बालक राम,चन्द्रकान्त वर्मा,मदन कुमार,दलीप सिंह,रामप्रकाश,अमित ठाकुर,रमन थारटा,अनिल ठाकुर,रविन्द्र चन्देल व गौरव नाथन आदि मौजूद रहे।

 मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा,सदस्य विवेक कश्यप,सत्यवान पुंडीर व जियानंद शर्मा ने निजी स्कूलों में पढ़ने वाले छः लाख छात्रों के दस लाख अभिभावकों सहित कुल सोलह लाख लोगों से निजी स्कूलों की पूर्ण फीस उगाही का पूर्ण बहिष्कार करने की अपील की है। उन्होंने पूर्ण फीस वसूली पर कैबिनेट के निर्णय को बेहद चौंकाने वाला छात्र व अभिभावक विरोधी निर्णय बताया है।

इस निर्णय के आने के बाद निजी स्कूलों ने छात्रों व अभिभावकों को मानसिक तौर पर प्रताड़ित करना शुरू कर दिया है। निजी स्कूलों व संस्थानों ने दोबारा से छात्रों व अभिभावकों को पूर्ण फीस जमा करने के लिए मोबाइल मैसेज भेजना शुरू कर दिए हैं। इन मैसेज में उन्हें डराया धमकाया जा रहा है कि अगर पूर्ण फीस जमा न की गई तो छात्रों को न केवल संस्थानों से बाहर कर दिया जाएगा अपितु उन्हें परीक्षाओं में भी नहीं बैठने दिया जाएगा। ऐसे अनेकों उदाहरण प्रदेश में देखने को मिल रहे हैं। विजेंद्र मेहरा ने माननीय उच्च न्यायालय से अपील की है कि वह निजी स्कूलों द्वारा पूर्ण फीस वसूली के मामले पर हस्तक्षेप करके प्रदेश सरकार पर कार्रवाई करे। प्रदेश सरकार उच्च न्यायालय के निर्णय की गलत व्याख्या कर रही है व अपनी सुविधा अनुसार माननीय उच्च न्यायालय के नाम पर निजी स्कूलों को छूट दे रही है। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा है कि प्रदेश सरकार द्वारा आज तक माननीय उच्च न्यायालय द्वारा 27 अप्रैल 2016 को निजी स्कूलों की लूट को रोकने के संदर्भ में दिए गए ऐतिहासिक निर्णय को लागू नहीं किया गया है।

यह न्यायालय के आदेशों की अवहेलना है। उन्होंने हैरानी व्यक्त की है कि उच्च न्यायालय के साफ-साफ शब्दों में दिए गए वर्ष 2016 के निर्णय को प्रदेश सरकार लागू नहीं करती है व वर्ष 2020 के निर्णय को अपनी ही सुविधा अनुसार पुनर्परिभाषित करके निजी स्कूलों को फायदा पहुंचा रही है। उन्होंने प्रदेश सरकार से पूछा है कि जब उच्चतर शिक्षा निदेशक ने पूर्ण फीस वसूली की अधिसूचना अभी तक जारी नहीं की है तो फिर निजी स्कूल प्रबंधन किस आधार पर अभिभावकों को पूर्ण फीस जमा करने के संदेश भेज रहे हैं व उन्हें क्यों मानसिक तौर पर प्रताड़ित कर रहे हैं। उन्होंने प्रदेश सरकार से पूछा है कि शिक्षा निदेशक के आदेशों के बिना पूर्ण फीस वसूली की मांग करने वाले निजी स्कूल प्रबंधनों पर उसने क्या कानूनी कार्रवाई की है। उन्होंने मांग की है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39(एफ) के अनुसार निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के नैतिक व भौतिक अधिकारों की रक्षा की जाए व उन्हें मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने वाले निजी स्कूल प्रबंधनों पर सख्त कार्रवाई अमल में लाई जाए। उन्होंने कहा है कि प्रदेश सरकार की निजी स्कूलों के साथ मिलीभगत का पर्दाफाश हो चुका है। इस मिलीभगत के कारण ही सरकार ने मई महीने में जान बूझकर अधिसूचना में अस्पष्टता दिखाई ताकि वक्त आने पर निजी स्कूलों को इसकी आड़ में लूट की खुली इज़ाज़त दी जा सके। टयूशन फीस के अलावा बाकी अन्य चार्जेज़ सहित फीस माफी को अधिसूचना में जान बूझ कर नहीं दर्शाया गया। एक भी दिन स्कूल गए बिना ही छात्रों व अभिभावकों से मनचाही फीस उगाही जा रही है। यह सरकार की निजी स्कूलों की लूट व मनमानी को सुनिश्चित करने की पराकाष्ठा है। शिमला जैसे विंटर स्कूलों में फाइनल एग्जाम की डेटशीट व पाठयक्रम भी जारी हो चुका है। फाइनल ऑरल एग्जाम भी खत्म हो चुके हैं। एक भी दिन स्कूल नहीं लगे हैं। स्कूल का छात्रों पर कोई भी खर्चा नहीं हुआ है। उनके बिजली,पानी के बिल भी नाम मात्र हैं। उन्होंने कहा है कि नियमित स्कूल न चलने के कारण निजी स्कूल व संस्थान प्रबंधनों ने आधे अध्यापकों,कर्मचारियों,ड्राइवरों,सुरक्षा स्टाफ व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल कर कोरोना काल में भी चांदी कूटी है। इन स्कूलों ने कुल फीस व चार्जेज़ के अस्सी प्रतिशत हिस्से को टयूशन फीस में परिवर्तित करके अभिभावकों से ज़्यादातर फीस भी वसूल ली है। इसके विपरीत बच्चों की ऑनलाइन क्लासेज़ के लिए नए मोबाइल व डेटा इस्तेमाल करने पर अभिभावकों पर हज़ारों रुपये का अतिरिक्त खर्चा बढ़ गया है। इस तरह अभिभावकों व छात्रों की भारी लूट की जा रही है। उन्होंने प्रदेश सरकार से मांग की है कि पूर्ण फीस वसूली के निर्णय को तुरन्त वापिस लिया जाए।

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