पति-पत्नी के बीच प्यार,स्नेह और विश्वास के प्रतीक का पर्व है करवा चौथ: आचार्य कृष्ण लाल कौशल शास्त्री

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शिमला। करवाचौथ का व्रत पति-पत्नी के बीच प्यार,स्नेह और विश्वास के प्रतीक का पर्व है। करवा चौथ का व्रत हर सुहागिन म​हिला के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्रार्थना करती हैं। करवा चौथ का पावन पर्व 13 अक्टूबर, गुरुवार को रखा जाएगा। हिंदू धर्म में करवा चौथ का विशेष महत्व होता है। करवा चौथ व्रत निर्जला रखा जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से पति को लंबी आयु व अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

महिलाएं इस दिन चौथ माता से अपने दांपत्य जीवन में खुशहाली का आशीर्वाद मांगती हैं। करवा चौथ के दिन महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत करने के बाद रात के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपना व्रत खोलती हैं।

अगर व्रत में गलती से कुछ खा लिया तो करें ये उपाय

सबसे पहले स्नान कर लें और फिर सभी देवी-देवताओं से क्षमा मांग लें। इस व्रत में माता पार्वती, भगवान गणेश, भगवान शिव और भगवान कार्तिकेय की पूजा का विशेष महत्व होता है। सभी देवी- देवताओं से अपनी गलती के लिए माफी मांग लें।
भगवान से माफी मांगने के बाद विधि- विधान से पूजा- अर्चना कर लें।
चंद्रमा को अर्घ्य देने से पहले चंद्रमा से माफी मांग लें और फिर पूजा- अर्चना करें।
आप अपनी क्षमता के अनुसार किसी सुहागिन स्त्री को कुछ दान मे भी दे सकते हैं। इस व्रत में दान का विशेष महत्व माना गया है।

पूजाविधि

आचार्य कृष्ण लाल कौशल शास्त्री के अनुसार इस दिन सुहागिन स्त्रियां सूर्योदय से पहले स्नान करके व्रत रखने का संकल्प लेती हैं और सास द्वारा दी गई सरगी का सेवन करती हैं। सरगी में मिठाई,फल,सैंवई,पूड़ी और साज-श्रृंगार का सामान दिया जाता है। इसके बाद करवा चौथ का निर्जल व्रत शुरू हो जाता है,जो महिलांए निर्जल व्रत ना कर सके वह फल,दूध,दही,जूस,नारियल पानी ले सकती हैं। व्रत के दिन शाम को लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं,इस पर भगवान शिव,माता पार्वती,कार्तिकेय,गणेश जी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित कर दें अन्यथा शिव परिवार की तस्वीर भी रख सकते हैं। एक लोटे में जल भरकर उसके ऊपर श्रीफल रखकर कलावा बांध दें व दूसरा मिट्टी का टोंटीदार कुल्लड़(करवा) लेकर उसमें जल भरकर व ढक्कन में शक्कर भर दें,उसके ऊपर दक्षिणा रखें,रोली से करवे पर स्वास्तिक बनाएं। इसके बाद धूप,दीप,अक्षत व पुष्प चढाकर भगवान का पूजन करें,पूजा के उपरांत भक्तिपूर्वक हाथ में गेहूं के दाने लेकर चौथमाता की कथा का श्रवण या वाचन करें। तत्पश्चात् रात्रि में चंद्रमा के उदय होने पर चंद्रदेव को अर्ध्य देकर बड़ों का आशीर्वाद लें।

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