जयपुर। जयपुर में चल रहे 83वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में अपने विचार प्रकट करते हुए हिमाचल प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने कहा कि आज पूरा भारत वर्ष आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है और अभी भी हमारी संसद और विधान मण्डल उतना शस्क्त और प्रभावशाली नहीं बन सका जितना हमने आजादी मिलने के समय अपेक्षा की थी । श्री पठानिया ने कहा कि बदतलते परिवेश के साथ हमें संसद एवं विधान मण्डलों को और अधिक प्रभावी, उत्तरदायी एवं उत्पादकतायुक्त बनाने की आवश्यकता है। इस अवसर पर सदन में लोकसभा के माननीय अध्यक्ष ओम बिरला, राज्यसभा के माननीय उप सभापति हरिवंश तथा राजस्थान विधान सभा के माननीय अध्यक्ष सीपी जोशी तथा अन्य राज्य विधान मण्डलों के पीठासीन अधिकारी मौजूद थे1
अपने सम्बोधन के दौरान पठानिया ने कहा कि संसद केवल कानून बनाने की संस्था नहीं है अपितु एक बहू-कार्यात्मक संस्था है जो विभिन्न् प्रकार की भूमिकाओं को निभाती है। राष्ट्र के आदर्शों , आशाओं और विश्वास के संरक्षक होने के नाते इसकी एक प्रतिनिधि भूमिका है। इसके अलावा संसद कार्यपापलिका को अपने कार्यों और भूल चूक के लिए जवावदेही ठहराती है। वर्तमान समय में संसद / विधायिका की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण हो रही है क्योंकि समाज में बढती जटिलताओं के साथ संसद के लिए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण हो जाता है कि समाज जिन मुद्दों का सामना कर रहा है उन पर विचार -विमर्श किया जाए।
पठानिया ने कहा कि पिछले साढे सात दशकों में भारत ने एक जींवत, स्थिर और कार्यशील लोकतन्त्र को बनाये रखा है लेकिन दूर्भाग्य से न भारत की संसद विकसित हुई है और न ही परिपक्व हुई है। जैसा कि इतने वर्षों बाद भी हो सकता है या नहीं होना चाहिए। जवावदेही और निरिक्षण के साधन के रूप में संसद की प्रभावशीलीता में गिरावट आई है। हमारी संसद में कानुन बनाने की प्रक्रिया लगातार धीमी हो रही है। कानून अक्सर हड़बडी में पारित किये जाते हैं और बिना किसी जांच पड़ताल के और बिना किसी अनुवर्ती नियमों के कुछ मामलों में किसी विधेयक का कानून बनाने में एक साथ कई सत्र लग जाते है। इसके अतिरिक्त सत्र छोटा होना, विपक्ष द्वारा कार्यवाही में व्यवधान के कारण समय बर्बाद होना तथा संसद के सदस्यों की अनुपस्थिति भी मुख्य चिन्ता का कारण है।
पठानिया ने सुझाव देते हुए कहा कि संसद के समय को बढ़ाना चाहिए, सदन में सार्थक चर्चा होनी चाहिए तथा सांसद उन मुद्दों पर चर्चा करें जिनसे उनके निर्वाचन क्षेत्रों में ज्यादा परेशानी हो रही है और उसका समाधान भी अवश्य होना चाहिए। श्री पठानिया ने कहा कि वाद-विवाद और चर्चायें मुल्यवर्धित और गुणात्मक होनी चाहिए ताकि वह प्रासंगिक हो। उन्होंने कहा कि सांसदों / विधायकों को सदन की कार्यवाही में सक्रियता से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त संसदीय समितियों की भूमिका को भी अधिक प्रभावशाली बनाना चाहिए । संसद के पास समय की कमी हो सकती है लेकिन समितियों के पास नहीं उनका कार्य वर्षभर चलता रहता है। समितियों के विषय को विशिष्ट संसाधनों और अनुसंधान की आवश्यकता होती है इसलिए उन्हें विशेषज्ञ पैनल उपलब्ध कराना चाहिए ।
पठानिया ने कहा कि आज जरूरी है हमें संसद व विधान मण्डलों को सशक्त बनाना होगा ताकि हम लोकतान्त्रिक व्यवस्था को सुदृढ़ बना सकें।