लाहौल घाटी किसान मंच ने दिल्ली बॉर्डर तथा देश के विभिन्न हिस्सों में आंदोलित किसानों के ‘भारत बंद’ के आह्वान के समर्थन में उपायुक्त लाहौल स्पीति श्री पंकज राय के माध्यम से माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को ज्ञापन सौंपा। हिमाचल प्रदेश के लाहौल किसान मंच के अध्यक्ष श्री सुदर्शन जस्पा ने कहा कि देशभर के किसान भारत सरकार द्वारा महामारी की आड़ में पारित किए गए कृषि अध्यादेशों एवं संशोधन को निरस्त करने की मांग को लेकर लगातार आंदोलनरत हैं, चूंकि लाहौल घाटी किसान मंच लाहौल स्पीति जिले के प्रगतिशील किसानों का संगठन है इसलिए अपनी नैतिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए यह मंच देश के आंदोलनरत किसानों के आंदोलन और भारत बंद के आह्वान का पूर्ण रुप से समर्थन करती है।
गजब इत्तेफाक है कि जिन अध्यादेशों के आने के बाद पूरे देश के किसान जिस आशंका को लेकर आंदोलनरत हैं लाहौल स्पीति का किसान इन परिस्थितियों को लंबे समय से झेलता आ रहा है। पहली नजर में यह कानून काफी आकर्षक नजर आते हैं लेकिन इनमें बहुत सारी खामियां हैं जिन पर गौर करने की आवश्यकता है। इन अध्यादेशों से आंदोलित किसानों को यह डर लग रहा है कि कहीं एक देश एक बाजार के नाम पर APMC जैसी मंडिया धीरे- धीरे कहीं गायब ना हो जाए और किसान पूरी तरह से बाजार के हवाले हो जाएंगे, वही न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में सुरक्षा गारंटी की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। अब लाहौल स्पीति जिले के किसानों की बात करें तो साल में उगाई जाने वाली इकलौती फसल के लिए किसी किस्म के न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था नहीं है वहीं पूरे ज़िले में एक भी सब्जी मंडी नहीं होने के कारण किसानों की उपज पूरी तरह बाजार के हवाले हैं। ज्यादातर लोग एक कॉपी और पेन उठाकर आते हैं और किसानों के उपज के पैसों पर ही पूरा व्यापार कर जाते है। अधिकतर मौकों पर बिना पैसे दिए ही वहां से खिसक जाते हैं तथा इन व्यापारियों की आर्थिक स्थिति, सम्पत्ति का ब्यौरा या रजिस्ट्रेशन की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण इनके फरार हो जाने की सूरत में कानूनी कार्रवाई का विकल्प नहीं रह पाता है और यह बिचौलिए किसानों की इस लाचारी का पूरा फायदा उठाते हैं। जो मटर हम ₹30 में बेचते हैं उसी मटर की कीमत दिल्ली मैं ₹100 से ज्यादा हो जाती है और इसमें बिचौलिए बिना ज्यादा मेहनत किए किसान से ज्यादा पैसा कमा जाते हैं।
दूसरे बिल में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की बात की गई है जिसके तहत बड़ी-बड़ी कंपनियां सीधे किसानों से करार कर उनकी फसलें खरीद लेंगे। लाहौल में इसका जीता जागता उदाहरण संताना आलू की खेती है जहां पर लोगों के साथ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की बात तो की जाती रही है लेकिन कॉन्ट्रैक्ट किन किसानों के साथ हुआ यह किसी को पता नहीं है। शुरुआत में अच्छे बीज तथा अच्छे दाम किसानों को आकर्षित करने में तो कामयाब हो गए लेकिन धीरे-धीरे उनके सुर बदलने से अब नतीजे सामने आने लगे हैं। किसानों को पूरी कीमत पर बी और सी ग्रेड के खराब बीज बांटे गए वहीं अब शिकायतें आने लगी है कि बाद में दिए जाने वाले बकाया 25% राशि को कंपनी कई बहानों जैसे कि आलू खराब निकला, ओवरसाइज, मिक्स या डैमेज इत्यादि- इत्यादि से डकार जाते हैं। असल बात तो यह है कि इन कंपनियों के कहने पर हम जब इन फसलों को तैयार करते हैं तो इसको बेचने के लिए उन कंपनियों के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं रह जाता है। ऐसे में किसानों की गर्दन इन कंपनियों के चंगुल में फंस जाती है और रही बात कोर्ट कचहरी की तो एक किसान के पास कब इतना समय रहा है कि इन चकरों में अपने जूते घिसता फिरे। तीसरा कानून एक संशोधन के रूप में है जिसमें जरूरी खाद्य सामग्रियों के भंडारण में खुली छूट दी गई है। चूंकि भंडारण व कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था बड़ी-बड़ी कंपनियों, बड़े पूंजीपति और बड़े व्यापारियों के पास ही है और इन्हीं जरूरी खाद्य सामग्रियों का उत्पादन करने वाले किसानों को इसका कोई लाभ नहीं होगा। ज्यादातर मौकों पर भंडारण का इस्तेमाल कालाबाजारी के लिए किया जाता है जिसका सीधा -सीधा असर न केवल किसानों को बल्कि पूरे जनमानस पर भी होगा।
आज जब किसान अपने हक- हकूक की लड़ाई के लिए सड़कों पर उतरा है तो उन के इस आंदोलन को मजबूती देने और भारत सरकार से इन तीनों कानूनों को निरस्त करने की मांग पूरे देश को करनी होगी ताकि संकट से जूझ रहे किसानों और आम जन को राहत मिल सके।