शिमला। प्रदेश के सभी जिलों में 20 से अधिक खंडों में मजदूर संगठन सीटू के आह्वान पर आयोजित प्रदर्शन में किसान सभा ने भी हिस्सा लिया। हिमाचल किसान सभा ने कृषि कानूनों को किसान विरोधी बताया।
कसुम्पटी कमेटी द्वारा आयोजित प्रदर्शन में हिमाचल किसान सभा के राज्य कोषाध्यक्ष एवं जिलाध्यक्ष सत्यवान पुण्डीर ने किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए कहा कि अगर केंद्र सरकार ने किसानों की मांगें पूरी नहीं की तो प्रदेश के हर जिले से किसान दिल्ली जाएंगे और आंदोलन में हिस्सा लेंगे।
कृषि कानूनों वापस लेने की मांग पर दिल्ली में पंजाब और हरियाणा के किसान डेरा डालकर बैठे हैं. हालांकि हिमाचल के किसान भी इस आंदोलन से अछूते नहीं हैं. क्योंकि इन कृषि बिलों के खिलाफ 26-27 नवम्बर को अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन के तहत हिमाचल प्रदेश में हर जिला में किसान-मजदूर संगठनों ने अपनी जबरदस्त भागीदारी दी थी।
जिलाध्यक्ष ने आंदोलन का समर्थन करते हुए कहा कि अगर केंद्र सरकार ने किसानों की मांगें पूरी नहीं की तो प्रदेश के हर जिले से किसान दिल्ली जाएंगे और किसान आंदोलन में हिस्सा लेंगे. उन्होंने कहा कि इस वक्त भी दिल्ली में हिमाचल के कुछ किसान डटे हुए हैं, लेकिन आने वाले समय में बड़ी संख्या में हिमाचल के किसान आंदोलन में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कराएंगे.
किसानों की सभी मांगें जायज हैं. केंद्र सरकार के कृषि कानून पूरी तरह किसान विरोधी हैं. हिमाचल में MSP के तहत केवल 3 फसलों गेहूं, धान व मक्की ही आती हैं, लेकिन इसके लिये FCI के तहत कोई सरकारी खरीद न होने से किसानों को कोई लाभ नहीं मिलता। जबकि प्रदेश में मक्की की कुल 7 लाख मीट्रिक टन से अधिक पैदावार होने तथा उसमे से 3 लाख मीट्रिक टन बाजार के लिए उत्पादन होता है लेकिन खरीद व्यवस्था न होने से ओने पौने दामों पर बेचना पड़ता है।
इसके अलावा 2014 के चुनावों के दौरान मोदी जी ने हिमाचल में आकर रैलियों में घोषणा की थी कि यहां के किसानों को फल, सब्जी, दूध, ऊन, शहद, आदि उत्पादों पर भी समर्थन मूल्य मिलना चाहिए लेकिन आज सत्ता में आने के बाद MSP को ही खत्म करने का काम किया जा रहा है।
हिमाचल के किसान और बागवान भी इससे प्रभावित होंगे क्योंकि हिमाचल की मुख्य नगदी फसल फल और सब्जियां हैं. इनकी खरीद पर किसी तरह का समर्थन मूल्य नहीं दिया जाता है. इसके अलावा न ही इनके प्रोसेसिंग और स्टोरेज की व्यवस्था है. इसके साथ पिछले 3-4 वर्षों से MIS स्कीम के तहत केंद्र सरकार के पद प्रदेश के सेब का करीब 50 करोड़ रुपये लंबित पड़ा है जिसे अभी तक भी जारी नहीं किया है, यह प्रदेश के बागवानों के साथ छलावा है।