किन्नौर। जनजातीय जिला किन्नौर में प्रदेश सरकार द्वारा आरंभ की गई महत्वकांक्षी योजना सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के परिणाम जमीनी स्तर पर आने शुरू हो गए हैं तथा जिले में अब प्राकृतिक खेती की और लोगों का रूझान दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है जिसका श्रेय वे प्रदेश सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती की और जागरूक करने के लिए किए जा रहे विशेष प्रबंधों व कार्यक्रमों को देते हैं।
जिले में वर्तमान मेें 1084 किसान व बागवान प्राकृतिक खेती को अपना रहे हैं जिसकी संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। किन्नौर जिला के पूह उपमण्डल के मूरंग गांव के जीत नेगी पिछले 4 वर्षों से प्राकृतिक खेती ही नहीं बल्कि प्राकृतिक बागवानी भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि उन्होंने कृषि विभाग के सहयोग व जानकारी से प्राकृतिक खेती की और कदम बढ़ाया। उन्होंने बताया कि वर्ष 2018 में कृषि विभाग द्वारा शिमला जिले के रोहड़ू में प्राकृतिक खेती को लेकर एक जागरूकता एवं प्रशिक्षण शिविर लगाया गया था जिसमें सुभाष पालेकर ने किसानों को प्राकृतिक खेती के बारे में विस्तृत जानकारी दी थी। इसी प्रशिक्षण शिविर से प्रभावित होकर वह प्राकृतिक खेती की और अग्रसर हुए।
उनका कहना है कि प्राकृतिक खेती एक ऐसा व्यवसाय है जिस पर किसान को नाम मात्र का पैसा खर्च करना पड़ता है तथा जिसमें फायदे ही फायदे हैं क्योंकि प्राकृतिक खेती से तैयार की गई फसल गुणवत्तापूर्ण होने साथ-साथ किसानों को बेहतरीन दाम उपलब्ध करवाती है। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने पुराने बागीचे जिसमें लगभग 1500 सेब के पेड़ थे उसको भी पूरी तरह से प्राकृतिक खेती में बदला जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।
उनका कहना है कि शुरू में उन्हें एक दो साल थोड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ा क्योकि शुरू में वे कीटनाशक खाद व कैमिकल खाद का प्रयोग करते थे। एकदम इन्हें बंद करने के चलते बागीचों में कुछ बीमारियां भी लगी व फसल भी कम हुई परंतु दो साल बाद प्राकृतिक खेती के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं जिससे अब जहां फसल पहले से ज्यादा हो रही है वहीं फसल की गुणवत्ता के कारण उन्हें इसके बेहतर दाम भी प्राप्त हो रहे हैं।
जीत नेगी का कहना है कि उन्होंने अब लगभग दो बीघे से अधिक जमीन पर 2200 सेब के पौधे लगाए हैं जिन्हें पूरी तरह से प्राकृतिक उर्वरक आदि से तैयार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि उन्होंने लगभग 10 हजार पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है जो पूरी तरह से प्राकृतिक खाद व स्प्रै आदि पर आधारित होंगंे।
उन्होंने कहा कि इसी बीच विभाग की सहायता से उन्होंने मुंबई में प्राकृतिक खेती उत्पादों पर आधारित फसलों के लिए लगाई गई प्रदर्शनी में भाग लिया जिसमें उन द्वारा तैयार किए गए प्राकृतिक उत्पादों जैसे सेब, राजमाह, आलू, काला आलू, मटर आदि को लोगों द्वारा बहुत पंसंद किया गया तथा इसके उन्हें बहुत ही बेहतरीन दाम भी मिले। उनका कहना था कि इस दौरान उन्होंने प्राकृतिक खेती द्वारा तैयार किए गए सेब को लगभग 350 रुपये किलो तक बेचा और वहीं से उन्हें अपने उत्पादों के लिए एक बेहतरीन बाजार भी उपलब्ध हुआ।
आज वे और उनके ग्रुप के अन्य सदस्य मुंबई, दिल्ली, और बैंगलोर जैसे महानगरों में अपने प्राकृतिक उत्पादों को भेज रहे हैं तथा उत्पादों की गुणवत्ता के कारण हर वर्ष मांग बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि वे आज सेब के साथ-साथ राजमाह, आलू, काला आलू, मटर व गोभी को भी प्राकृतिक खेती के द्वारा ही तैयार कर रहे हैं। इसके अलावा वे ढींगरी मश्रूम भी तेयार कर रहे हैं जो पूरी तरह से प्राकृतिक रूप से तैयार किए गए उर्वरक व कीटनाशक से ही तैयार किए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा उन्हें समय-समय पर विभिन्न योजनाओं के साथ सहायता भी प्रदान की गई। जीवामृत व अन्य कीटनाशक तैयार करने के लिए उन्हें विभाग द्वारा प्लास्टिक ड्रम व अन्य सामग्री भी उपलब्ध करवाई गई। उनका कहना है कि युवाओं को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए आगे आना चाहिए क्योंकि इससे जहां तैयार की गई फसल गुणवत्ता में अन्य फसलों से बेहतर होती है वहीं इस पर खर्चा भी नाम मात्र का ही होता है तथा सरकार द्वारा भी इस पर होने वाले खर्चे पर अनुदान भी दिया जाता है।
उनका मानना है कि भविष्य में प्राकृतिक खेती से तैयार किए गए उत्पादों की मांग और अधिक बढ़ेगी जिससे युवा आर्थिक रूप से और सुदृढ़ हो सकेंगें।
उपनिदेशक कृषि सोमराज का कहना है कि विभाग द्वारा किसानों व बागवानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रोत्साहित व जागरूक करने के लिए गांव-गांव में जागरूकता शिविर लगाए जा रहे हैं तथा विभाग द्वारा जिले में प्राकृतिक खेती के लिए प्रयोग होने वाले 1714 ड्रम, गौशाला निर्माण के लिए 126 व्यक्तियों को उपदान के अलावा 18 देसी गाय खरीदने व संसाधन भण्डार तैयार करने के लिए 30 व्यक्तियों को उपदान प्रदान किया गया।