सफाई व्यवस्था बनाने के लिए हर साल अभिभावकों की जेब से जा रहा है एक लाख
करसोग। प्रदेश में हर साल छात्रों के मिड डे मील सहित वर्दी, पानी की बोतल ब मुफ्त बैग देने पर करोड़ों रुपए खर्च करने वाली सरकार के पास शिक्षा के मंदिरों में शौचालय की सफाई के लिए बजट का प्रावधान नहीं है। ऐसे में स्कूलों में सरकार के स्वच्छ भारत अभियान के दावों की पोल खुल गई है। इस तरह का मामला करसोग मुख्यालय में स्थित राजकीय आदर्श वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला में सामने आया है। यहां सफाई के लिए अलग से बजट का व्यवस्था न होने और नियमों में स्कूलों की सफाई के लिए कर्मचारी की तैनाती का प्रावधान न होने का बोझ छात्रों पर डाला गया है। वह ऐसे कि स्कूल में बने शौचालय की सफाई व्यवस्था के लिए छात्रों से सालाना 100 रूपए शुल्क वसूला जा रहा है। एसएमसी के माध्यम से वसूला जा रहा यह शुल्क फीस के अतिरिक्त है। एसएमसी ने सफाई व्यवस्था को बनाने के लिए अपने स्तर पर दो सफाई कर्मचारियों की नियुक्तियां की है। जिसकी एवज में छात्रों से शुल्क वसूला जा रहा है । ऐसे में नियमों में सफाई के लिए बजट का प्रावधान न होने से हर साल अभिभावकों की जेब ढीली हो रही है। राजकीय आदर्श वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला में करीब 1000 छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इस तरह प्रति छात्र 100 रूपए वसूले जाने से हर साल अभिभावकों की जेब से एक लाख रुपए सफाई व्यवस्था को बनाने पर खर्च हो रहा है। जिससे सरकार की शिक्षा के मंदिरों के प्रति नजरिए की भी पोल खुल गई है।
राजकीय आदर्श वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला के प्रिंसिपल धर्मेंद्र कुमार का कहना है कि स्कूल में सरकार की तरफ से सफाई कर्मचारी नियुक्त नहीं किया गया है। हर विद्यालय में यही स्थिति है। ऐसे में एसएमसी ने स्कूल में शौचालय की सफाई व्यवस्था के लिए अपने स्तर पर सफाई कर्मचारियों कि व्यवस्था की है। जिसके लिए सालाना प्रति छात्र 100 रूपए एकत्रित किए जाते हैं। जिसका हिसाब किताब एसएमसी ही देखती है। उन्होंने कहा कि स्कूल के लिए सरकार जो फंड उपलब्ध करवाती है, उससे साल भर की व्यवस्था नहीं हो पाती है।