पांगणा। मण्डी जिले का पांगणा गांव सुकेत रियासत की आरम्भिक राजधानी रही है।सन् 765 ई. में बंगाल के चन्द्रवंशी सेन राजकुमार वीर सेन ने यहां राणाओं व ठाकुरों के शासन का अंत कर सुकेत की नींव रखी थी।कालांतर में 11वीं शताब्दी में सुकेत के ही एक राजपुरुष ने मण्डी की नींव रखी थी।
रियासती काल में राजसी सत्ता का केन्द्र होने के कारण पांगणा सुकेत व मण्डी के पर्वतीय क्षेत्र का केन्द्र रहा है।पांगणा का भौगोलिक स्वरूप ऐसा है कि यहां तीन विधानसभा चुनाव क्षेत्र-करसोग,नाचन और सुन्दरनगर की सीमाएं विलीन होती हैं।अत: यह क्षेत्र तीनों विधानसभा क्षेत्रों के सीमांत क्षेत्र के केन्द्र पांगणा प्राचीन समय से ही ऋषि मुनियो की सुरम्य नगरी व तप तीर्थ स्थली रही है।सेेवा और राष्ट्रीय एकात्मकता का भाव जागृत करने मे पांगणा का अतुल्य योगदान रहा है।ऐतिहासिक नगरी पांगणा का यह परम सौभाग्य है कि राष्ट्र निर्माण के पुनीत सेवा कार्य को समर्पित राष्ट्रीय स्वयंसेवक दल ने गुरु पूर्णिमा व शरद पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर पांगणा के इतिहास में पहली बार पथ संचालन कर जन-जन के मन में अपार एकात्म भाव,आस्था विकसित करने वाला पुनीत भाव जागृत किया।इस दौरान अपनी समॄद्ध संस्कृति को अमरत्व प्रदान किए पांगणा वासियों ने जगह-जगह स्वयंसेवको पर पुष्प वर्षा कर स्वयंसेवको के पथ संचालन का स्वागत किया।
ऐतिहासिक नगरी पांगणा में पहली बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पथ संचालन में लगभग साठ स्वयंसेवकों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम में कार्यक्रम अध्यक्ष के रूप में पद्मनाभ वन विभाग से अधीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए पद्मनाभ मौजूद रहे।शिक्षा विभाग में हिन्दी विषय के प्रवक्ता श्री विद्यासागर मुख्य वक्ता थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांगणा खण्ड के खण्ड संघ चालक सूरजन मौजूद रहे।
कार्यक्रम के आरम्भ में अधिकारियों द्वारा शस्त्र पूजन किया गया। फिर 30 मीनट का बौद्धिक स्त्र चला। जिसमें मुख्य वक्ता द्वारा संघ की पृष्ठभूमि और इसके उद्देश्य के बारे में बताया गया।